सिंघाड़ा  तालाब के पानी की सतह पर तैरने वाला जलीय शाकीय पौधा होता है। इसके काण्ड टेढ़े-मेढ़े, आरोही होते हैं। इसके पत्ते जलकुंभी के समान, किन्तु त्रिकोणाकार तथा स्पंजी होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के तथा जल की ऊपरी सतह पर खुले हुए होते हैं। इसके फल कठोर, त्रिकोणीय, चपटे तथा दो कोणों पर कंटकों से बने हुए होते हैं। इसके बीज संख्या में एक तथा सफेद रंग के होते हैं। इसकी जड़ हरे रंग की, जल में डूबी हुई होती है।

वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल  होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला,  कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं  वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।

इसके बीज पोषक, दर्द को कम करनेवाला, ब्रेस्ट साइज को बढ़ाने वाला,  बुखार कम करने वाला, भूख बढ़ाने वाला तथा कमजोरी कम करने वाला होता है।

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इसके फल अतिसार या दस्त में लाभप्रद होते हैं और फल का छिलका कमजोरी दूर करने और बुखार के लक्षणों से आराम दिलाने में मदद करता है।

सिंघाड़ा  का वानास्पतिक नाम (ट्रापा नटान्स किस्म-बाइस्पाइनोसा)  (ओनाग्रेसी) कुल का है। सिंघाड़ा को अंग्रेज़ी में  (वॉटर केलट्रॉपस्) कहते हैं, लेकिन सिघाड़ा को अन्य भाषाओं भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

सिंघाड़े  में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। चलिये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

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अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन  से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान का लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी,  सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।

तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है

 

पीलिया के बीमारी में शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है। सिंघाड़े में पित्त शामक गुण होने के कारण यदि इसका सेवन इस अवस्था में किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद हो सकता है।

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सिंघाड़े के सेवन से शरीर में ऊर्जा बढ़ने में फायदा मिलता है। इसके मधुर एवं गुरु गुण के कारण यह देर से पचता है और शरीर में ऊर्जावान भी साबित होता है।

अनिद्रा का एक अहम् कारण होता है वात दोष का बढ़ना। यह ज्यादा स्ट्रेस या तनाव की वजह से भी होता है। सिंघाड़े में गुरु और मधुर गुण होने के कारण ये वात को शांत करने में मदद करता है जिससे तनाव कम होता है और अच्छी नींद आती है

पेट की समस्या जैसे खाना ठीक से नहीं पचना या भूख कम लगना आदि भी पित्त दोष के असंतुलित होने के कारण होता है। इस अवस्था में पाचकाग्नि मंद पड़ जाती है। सिंघाड़े के सेवन से पाचकाग्नि को मजबूत कर पाचन तंत्र को स्वस्थ किया जाता है, क्योंकि इसमें मधुर एवं पित्त शामक गुण पाए जाते हैं। डॉ। नुस्के रोको-जी पुरुष शक्ति वृद्धि 10 कैप्स कैप्सूल 30 ग्राम

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त्वचा में होने वाली परेशानियां जैसे त्वचा का काला पड़ना, झाइयां, कील मुंहासे आदि पित्त के अधिक बढ़ जाने के कारणता है। ऐसे में सिंघाड़े में पित्त शामक, शीत एवं कषाय गुण पाए जाने के कारण होता है। यह त्वचा को स्वस्थ बनाये रखने में बहुत उपयोगी होता है।

खुजली जैसी समस्या अक्सर पित्त या कफ दोष के बढ़ जाने के कारण होती है। ऐसे में सिंघाड़े के सेवन से इसमें  लाभ मिलता है क्योंकि इसमें पित्त शामक एवं शीत गुण पाया जाता है

बालों का झड़ना एवं कमजोर होना पित्त दोष के असंतुलित हो जाने के कारण होता है। ऐसे में सिंघाड़े के सेवन से पित्त दोष कम होता है इसके अलावा सिंघाड़े के सेवन से बालों की जड़ों तक पोषण पहुँचता है जिससे बालों को मजबूती मिलती है। एक रिसर्च में भी बताया गया है की इसमें पोटैशियम, जिंक विटामिन बी और ई जैसे पोषक तत्त्व पाए जाते है जो बालों के लिए लाभदायक होते हैं।

कभी-कभी प्रेगनेंसी  के बाद भी ब्लीडिंग होता है जिसके कारण नई नई बनी माँ के लिए बहुत ही कष्टदायक स्थिति हो जाती है। सिंघाड़ा का इस तरह से सेवन करने पर लाभ मिलता है।

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  • पांचवे महीने में यदि गर्भिणी को गर्भस्राव की आंशका हो तो सिंघाड़ा (water chestnut in hindi), कमलगट्टा तथा कशेरु का सेवन करना चाहिए। इससे गर्भस्राव नहीं होता है।
  • यदि सातवें माह में गर्भिणी को रक्तस्राव हो रहा हो तब सिंघाड़ा, कमलमूल, किशमिश, कशेरु तथा मुलेठी का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली काढ़े में मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • गर्भावस्था  में होने वाले रक्तस्राव में भी सिंघाड़े का प्रयोग अन्य द्रव्यों के साथ किया जाता है। शारीरिक कमजोरी में यह औषधि बहुत ही लाभदायक होता है।

 

रक्तप्रदर की समस्या से निजात पाने के लिए सिंघाड़ा आटा का सेवन करना लाभदायक होता है। सिंघाड़े के आटे की रोटी बनाकर खाने से रक्तप्रदर में लाभ होता

अगर स्पर्म काउन्ट को बढ़ाना चाहते हैं तो सिंघाड़े के आटे के हलवा  का सेवन करना लाभदायक होता है।

  • सिंघाड़े  fruit) के आटे का हलुआ बनाकर खाने से  शुक्राणु की वृद्धि होती है।
  • सिंघाडे के 5-10 ग्राम चूर्ण को दूध में मिलाकर सेवन करने से शुक्राणु की वृद्धि होती है।

अगर ब्रेस्ट का साइज संतोषजनक नहीं है तो इसको बढ़ाने के लिए सिंघाड़े (water chestnut का सेवन करें। प्रसूता स्त्री द्वारा सिंघाड़ा का सेवन करने से स्तन की वृद्धि होती है।

रक्तपित्त में लाभकारी होता है सिंघाड़े का इस तरह से सेवन। समान मात्रा में सिंघाड़ा, धान का लावा, नागरमोथा, खर्जूर तथा कमल केशर के चूर्ण (2-4 ग्राम) को मधु के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

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अक्सर घर में काम करते हुए हाथ जल जाता है तब सिंघाड़े का पेस्ट काम आता है। सिंघाड़े

सिंघाड़ा  fruit) तालाब के पानी की सतह पर तैरने वाला जलीय शाकीय पौधा होता है। इसके काण्ड टेढ़े-मेढ़े, आरोही होते हैं। इसके पत्ते जलकुंभी के समान, किन्तु त्रिकोणाकार तथा स्पंजी होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के तथा जल की ऊपरी सतह पर खुले हुए होते हैं। इसके फल कठोर, त्रिकोणीय, चपटे तथा दो कोणों पर कंटकों से बने हुए होते हैं। इसके बीज संख्या में एक तथा सफेद रंग के होते हैं। इसकी जड़ हरे रंग की, जल में डूबी हुई होती है।

वैसे तो हर मौसम के फल के फायदे खास होते हैं। सिंघाड़ा जलिय पौधे का फल  fruit) होता है। सिंघाड़ा मधुर, ठंडे तासिर का, छोटा, रूखा, पित्त और वात को कम करने वाला,  कफ को हरने वाला, रूची बढ़ाने वाला एवं  वीर्य या सीमेन को गाढ़ा करने वाला होता है। यह रक्तपित्त तथा मोटापा कम करने में फायदेमंद होता है।

इसके बीज पोषक, दर्द को कम करनेवाला, ब्रेस्ट साइज को बढ़ाने वाला,  बुखार कम करने वाला, भूख बढ़ाने वाला तथा कमजोरी कम करने वाला होता है।

इसके फल अतिसार या दस्त में लाभप्रद होते हैं और फल का छिलका कमजोरी दूर करने और बुखार के लक्षणों से आराम दिलाने में मदद करता है।

सिंघाड़ का वानास्पतिक नाम (ट्रापा नटान्स किस्म-बाइस्पाइनोसा)  है। यह (ओनाग्रेसी) कुल का है। सिंघाड़ा को अंग्रेज़ी में  Water  (वॉटर केलट्रॉपस्) कहते हैं, लेकिन सिघाड़ा को अन्य भाषाओं भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा

सिंघाड़े  fruit) में इतने पोषक तत्व हैं कि आयुर्वेद में उसको बहुत तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। चलिये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

 

अगर चलदंत से परेशान हैं तो सिंघाड़े का सेवन  से तरह से करने पर राहत मिलता है। चलदंत की अवस्था में दाँत को उखाड़कर, उस स्थान का लगाने से, विदारीकंद, मुलेठी,  सिंघाड़ा, कसेरू तथा दस गुना दूध से सिद्ध तेल लगाने से आराम मिलता है।

तपेदिक के कष्ट से परेशान हैं तो सिंघाड़ा का सेवन  इस तरह से करने पर लाभ मिलता है। समान मात्रा में त्रिफला, पिप्पली, नागरमोथा, सिंघाड़ा, गुड़ तथा चीनी में मधु एवं घी मिलाकर सेवन करने से राजयक्ष्मा या टीबी जन्य खांसी, स्वर-भेद तथा दर्द से राहत मिलती है।

कभी-कभी किसी बीमारी के कारण प्यास लगने की समस्या होती है तो कशेरु, सिंघाड़ा  fruit), कमल, सेमल, कमल की जड़ तथा इक्षु से बने काढ़े (10-30 मिली) का सेवन करने से प्यास लगने की बीमारी से आराम मिलता है।

अगर मसालेदार खाना खाने से दस्त की बीमारी हो गई है तो सिंघाड़ा  का सेवन इस तरह से करें। इमली बीज को भिगोकर, छिलका निकालकर आधा भाग शृंगाटक चूर्ण तथा चौथाई भाग अपांप्म मिलाकर, पीस कर टिकिया बनाकर, लोहे के तवे पर सेंक कर चावल के धोवन का सेवन करने से अतिसार में लाभ मिलता है। इसके अलावा सिंघाड़ा  का सेवन करने से अतिसार या दस्त की परेशानी कम होती है।

कच्चे सिंघाड़े (Shingade fruit) का सेवन करने से पाइल्स के कारण जो ब्लीडिंग होता है उसके दर्द और रक्तस्राव को कम करने में  सहायता करता है।

मूत्र संबंधी समस्या में मूत्र करते समय जलन और दर्द होना और धीरे-धीरे मूत्र होना जैसी समस्याएं आती हैं। सिंघाड़ा (singoda) इस समस्या से राहत दिलाने में बहुत काम करता है। सिंघाड़े के हिम (15-30 मिली) में शहद तथा चीनी मिलाकर सुबह पीने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

डायबिटीज होने पर ब्लड शुगर (singhara for diabetes) को कंट्रोल करना सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है। सिंघाड़ा (water chestnut in hindi)का इस तरह से सेवन करने पर शुगर को कंट्रोल में करना आसान होता है। शृंगाटक आदि से बने अरिष्ट, अयस्कृति, लेह, आसव आदि तथा  शृंगाटकादि वर्ग के कषायों से सिद्ध यवागू या सिंघाड़े का सेवन का सेवन करने से प्रमेह रोग में लाभ मिलता है।

पीलिया के बीमारी में शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है। सिंघाड़े में पित्त शामक गुण होने के कारण यदि इसका सेवन इस अवस्था में किया जाए तो यह बहुत फायदेमंद हो सकता है।

सिंघाड़े के सेवन से शरीर में ऊर्जा बढ़ने में फायदा मिलता है। इसके मधुर एवं गुरु गुण के कारण यह देर से पचता है और शरीर में ऊर्जावान भी साबित होता है।

अनिद्रा का एक अहम् कारण होता है वात दोष का बढ़ना। यह ज्यादा स्ट्रेस या तनाव की वजह से भी होता है। सिंघाड़े में गुरु और मधुर गुण होने के कारण ये वात को शांत करने में मदद करता है जिससे तनाव कम होता है और अच्छी नींद आती है।

पेट की समस्या जैसे खाना ठीक से नहीं पचना या भूख कम लगना आदि भी पित्त दोष के असंतुलित होने के कारण होता है। इस अवस्था में पाचकाग्नि मंद पड़ जाती है। सिंघाड़े के सेवन से पाचकाग्नि को मजबूत कर पाचन तंत्र को स्वस्थ किया जाता है, क्योंकि इसमें मधुर एवं पित्त शामक गुण पाए जाते हैं।

त्वचा में होने वाली परेशानियां जैसे त्वचा का काला पड़ना, झाइयां, कील मुंहासे आदि पित्त के अधिक बढ़ जाने के कारण होता है। ऐसे में सिंघाड़े में पित्त शामक, शीत एवं कषाय गुण पाए जाने के कारण होता है। यह त्वचा को स्वस्थ बनाये रखने में बहुत उपयोगी होता है।

खुजली जैसी समस्या अक्सर पित्त या कफ दोष के बढ़ जाने के कारण होती है। ऐसे में सिंघाड़े के सेवन से इसमें  लाभ मिलता है क्योंकि इसमें पित्त शामक एवं शीत गुण पाया जाता है।

बालों का झड़ना एवं कमजोर होना पित्त दोष के असंतुलित हो जाने के कारण होता है। ऐसे में सिंघाड़े के सेवन से पित्त दोष कम होता है इसके अलावा सिंघाड़े के सेवन से बालों की जड़ों तक पोषण पहुँचता है जिससे बालों को मजबूती मिलती है। एक रिसर्च में भी बताया गया है की इसमें पोटैशियम, जिंक विटामिन बी और ई जैसे पोषक तत्त्व पाए जाते है जो बालों के लिए लाभदायक होते हैं।

कभी-कभी प्रेगनेंसी (singhara benefits in pregnancy) के बाद भी ब्लीडिंग होता है जिसके कारण नई नई बनी माँ के लिए बहुत ही कष्टदायक स्थिति हो जाती है। सिंघाड़ा का इस तरह से सेवन करने पर लाभ मिलता है।

  • पांचवे महीने में यदि गर्भिणी को गर्भस्राव की आंशका हो तो सिंघाड़ा (water chestnut in hindi), कमलगट्टा तथा कशेरु का सेवन करना चाहिए। इससे गर्भस्राव नहीं होता है।
  • यदि सातवें माह में गर्भिणी को रक्तस्राव हो रहा हो तब सिंघाड़ा, कमलमूल, किशमिश, कशेरु तथा मुलेठी का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली काढ़े में मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • गर्भावस्था (singhara benefits in pregnancy) में होने वाले रक्तस्राव में भी सिंघाड़े का प्रयोग अन्य द्रव्यों के साथ किया जाता है। शारीरिक कमजोरी में यह औषधि बहुत ही लाभदायक होता है।

 

रक्तप्रदर की समस्या से निजात पाने के लिए सिंघाड़ा आटा (singhara atta)का सेवन करना लाभदायक होता है। सिंघाड़े के आटे की रोटी बनाकर खाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

अगर स्पर्म काउन्ट को बढ़ाना चाहते हैं तो सिंघाड़े के आटे के हलवा (singada halwa) का सेवन करना लाभदायक होता है।

  • सिंघाड़े (Shingade fruit) के आटे का हलुआ बनाकर खाने से  शुक्राणु की वृद्धि होती है।
  • सिंघाडे के 5-10 ग्राम चूर्ण को दूध में मिलाकर सेवन करने से शुक्राणु की वृद्धि होती है।

अगर ब्रेस्ट का साइज संतोषजनक नहीं है तो इसको बढ़ाने के लिए सिंघाड़े (water chestnut in hindi)का सेवन करें। प्रसूता स्त्री द्वारा सिंघाड़ा का सेवन करने से स्तन की वृद्धि होती है।

रक्तपित्त में लाभकारी होता है सिंघाड़े का इस तरह से सेवन। समान मात्रा में सिंघाड़ा, धान का लावा, नागरमोथा, खर्जूर तथा कमल केशर के चूर्ण (2-4 ग्राम) को मधु के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

अक्सर घर में काम करते हुए हाथ जल जाता है तब सिंघाड़े का पेस्ट काम आता है। सिंघाड़े (Shingade fruit) के पत्तों को पीसकर लेप करने से जलन कम होता

कभी-कभी किसी बीमारी के कारण सेक्चुअल स्टैमिना में कमी आ जाता है। समान भाग में सिंघाड़े के बीज, उड़द की दाल, खजूर, शतावर की जड़, सिंघाड़ा तथा किशमिश को विधि पूर्वक आठ गुना जल एवं आठ गुना दूध डालकर दूध के बचे रहने तक पकायें। फिर इसमें चीनी, वंशलोचन, ताजा घी और शहद मिलाकर पीने से वाजीकरण गुण की वृद्धि यानि सेक्स करने के दौरान सेक्सुअल स्टैमिना को बढ़ाने में करता है मदद।

 

 

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