धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। इस समुद्र मंथन से एक से एक बेशकीमती रत्न निकले थे लेकिन उनमें 14 तरह के रत्न खास थे। जैसे सबसे पहले निकला हलाहल विष, केमधेनु, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, लक्ष्मी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख, धन्वंतरि वैद्य और अमृत, लेकिन एक और चीज निकली थी और वह थी खास करह की शराब। आओ जानते हैं इसके बारे में संक्षिप्त में।
वारुणी (मदिरा):
1. कहते हैं कि समुद्र मंथन से वारुणी नाम से एक मदिरा निकली थी। जल से उत्प‍न्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण का अर्थ जल।
2. वरुण नाम के एक देवता हैं, जो असुरों की तरफ थे। वरुण की पत्नी को भी वरुणी कहते हैं। कहते हैं कि यह समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वही वरुण देवी की पत्नी वारुणी बनी। समुद्र मन्थन करने पर कमलनयनी कन्या के रूप में वारुणी देवी प्रकट हुई थी। कहते हैं कि सुरा अर्थात मदिरा लिए हुए वारुणी देवी समुद्र से प्रकट हुईं। भगवान की अनुमति के बाद इन्हें असुरों को सौंप दिया गया।
3. यह भी कहा जाता है कि कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को वारुणी कहते हैं। कुछ लोग ताल अथवा खजूर से निर्मित मदिरा को वारुणी मानते हैं। ये समुद्र से निकले वृक्ष भी माने जाते हैं।
4. चरकसंहिता के अनुसार वारुणी को मदिरा के एक प्रकार के रूप में बताया गया है और यक्ष्मा रोग के उपचार के लिए इसे औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
5. वारुणी नाम से एक पर्व भी होता है और वारुणी नाम से एक खगोलीय योग भी।
6. उल्लेखनीय है कि देवता सुरापान करते थे और असुर मदिरा। कहते हैं कि सुरों द्वारा ग्रहण की जाने वाली हृष्ट (बलवर्धक) प्रमुदित (उल्लासमयी) वारुणी (पेय) इसीलिए सुरा कहलाई। गौरतलब है कि देवता सोमरस भी पीथे जो कि एक शरबत होता था, शराब नहीं।
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