दिल की सेहत के मामले में देश की जनता भारी रिस्क पर है. डीएनए की एक रिपोर्ट बताती है भारत में हर साल 17 लाख से ज्यादा लोगों की मौत दिल की बीमारियों से होती है. ये रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक ये आंकड़ा 2.3 करोड़ तक जा सकता है. वहीं मेडलाइफ की एक रिपोर्ट बताती है कि करीब 40 प्रतिशत भारतीय 55 की उम्र से पहले ही हार्ट अटैक के खतरे में आ जाते हैं.

तो आज बात करते हैं कुछ ऐसी बीमारियों की जिनके कारण आपका दिल ख़तरे में पड़ जाता है. अब कौन सी हैं ये दिल की बीमारियां जो उम्र से पहले लोगों को हो रही हैं.

1. कोरोनरी आर्टरी डिजीज
2. कार्डियोमायोपैथी
3. वल्व्यूलर हार्ट डिसीज़
4. एंजाइना.

अब सुनने में ये नाम उतने ही ख़तरनाक है जितनी ये बीमारियां. पर आप नाम सुनकर मत डरिए. इन सारी बीमारियों के बारे में बात करते हैं बहुत ही आसान भाषा में. ये क्या होती हैं? क्यों होती हैं? और इनका इलाज है.

कोरोनरी आर्टरी डिजीज क्या है?

 

कैसे करें इस्तेमाल :
  • करी पत्ते को अच्छी तरह से धो लें।
  • रोज सुबह खाली पेट आठ से दस पत्तियों का सेवन करें।
  • समस्या के दिनों में यह प्रक्रिया रोजाना कर सकते हैं।
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कोरोनरी आर्टरी डिजीज का मतलब होता है हार्ट में ब्लड सप्लाई करने वाली नसों में ब्लॉकेज

क्यों होती है ये दिक्कत?

– डायबिटीज़. डायबिटीज़ एक ऐसी बीमारी है जिसमें हाई ब्लड शुगर के कारण हार्ट की नसों को नुकसान पहुंचता है और ब्लॉकेज हो जाते हैं.
– हाइपरटेंशन. हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर होना. हाई ब्लड प्रेशर होने के कारण दिल की नसों में ब्लॉकेज हो जाते हैं जिससे हार्ट अटैक आ सकता है.
– स्मोकिंग, तंबाकू.
– जेनेटिक यानी परिवार में इस बीमारी की हिस्ट्री रही है.
– कॉलेस्ट्रॉल. हाई कॉलेस्ट्रॉल के कारण हार्ट की नसों में ब्लॉकेज हो सकता है.

Coronary Artery Disease के लक्षण और इलाज क्या हैं?

इसके लक्षण हैं छाती के बीच में दर्द होना, भारीपन लगना, जलन होना, बाएं कंधे में दर्द होगा, चलते वक़्त तकलीफ़ बढ़ना, घबराहट लगना, या सांस लेने में तकलीफ़ होना.

इलाज

-अगर दर्द महसूस हो रहा है तो उस वक़्त एक कोरोनरी ऐन्जियोग्राफी की जाती है, ये एक तरह का स्पेशल एक्सरे है जिसमें पता चलता है कि कितने और किस तरह के ब्लॉकेज हैं. पता चलने पर कोरोनरी एंजियोप्लास्टी (सर्जरी) या बायपास सर्जरी की जाती है

कार्डियोमायोपैथी क्या है?

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-कार्डियोमायोपैथी मतलब हार्ट में जो मांसपेशियों की परत होती है उसको नुकसान पहुंचना. जिसके कारण हार्ट का फंक्शन कम हो जाता है

हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी में दिल की मांसपेशियों पर एक अबनॉर्मल परत बन जाती है

-दो तरह के कार्डियोमायोपैथी होते हैं. एक होता है डाएलेटेड कार्डियोमायोपैथी. दूसरा होता है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी

-डाएलेटेड कार्डियोमायोपैथी के कारण हैं हार्ट अटैक, हार्ट अटैक आने के बाद हार्ट की मांसपेशियों की परत में ब्लड सप्लाई कम हो जाता है. जिसके कारण वो मर जाती हैं. इसके बाद हार्ट सही तरह से काम नहीं कर पता. ढंग से हार्ट पंप नहीं कर पाता. हार्ट बड़ा हो जाता है.
– शराब पीना. अगर रोज़ शराब पी रहे हैं तो हार्ट ढंग से खून पंप नहीं कर पाता
– जेनेटिक

हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी में दिल की मांसपेशियों पर एक अबनॉर्मल परत बन जाती है. इस परत की चौड़ाई भी बढ़ जाती है. ये बीमारी जेनेटिक होती है.

Cardiomyopathy के लक्षण और इलाज क्या हैं?

-कार्डियोमायोपैथी के लक्षण हैं चलते वक़्त सांस लेने में तकलीफ़ होना, सांस फूलना, छाती में दर्द होना

इलाज

-इलाज के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं, जिनसे सांस लेने की तकलीफ़ कम हो सकती है

-CRT (कैथोड रे ट्यूब). ये एक तरह की मशीन होती है. ये दिल में लगाई जाती है, जिससे हार्ट सही से खून पंप करता है

-हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी में अचानक मौत का ख़तरा रहता है. उसको रोकने के लिए एक मशीननुमा चीज़ आती है. जिसे कहते हैं ICD (इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर). इसे हार्ट में लगाया जाता  है.

वल्व्यूलर हार्ट डिसीज़ क्या है?

-वल्व्यूलर हार्ट डिसीज़ मतलब दिल के चारों वॉल्व (वॉल्व दिल में खून को एक ही दिशा में बहने में मदद करता है) में से किसी भी वॉल्व में डैमेज हो जाना. डैमेज यानी किसी भी वॉल्व का साइज़ कम हो जाता है या फिर उसमें लीकेज हो जाता है.

कारण

-हिंदुस्तान में सबसे आम कारण है रूमेटिक हार्ट डिजीज़. मतलब हार्ट के वॉल्व में इन्फेक्शन हो जाना.

जैसे बैक्टीरियल इन्फेक्शन, फ़ंगल इन्फेक्शन के कारण भी वॉल्व को डैमेज होकर लीकेज हो सकता है

-ये 5 से 15 साल के बच्चों में होता है

-पर ये बढ़ने में समय लेता है

-कभी-कभी 20 से 25 साल भी लग जाते हैं

-इस बीमारी का पता चलता है 30 से 40 साल में

-इस बीमारी में वॉल्व छोटा होना सबसे आम है

-अलग तरह के इन्फेक्शन भी हो सकते हैं

-जैसे बैक्टीरियल इन्फेक्शन, फ़ंगल इन्फेक्शन के कारण भी वॉल्व में डैमेज हो सकता है

-जेनेटिक कारण भी होते हैं. इसमें पैदा होते ही बीमारी हो सकती है. जैसे वॉल्व का छोटा होना. इसकी वजह से सांस लेने में परेशानी होती है, दिल तेज़ धड़कता है

इलाज

-इसका मेन ट्रीटमेंट होता है बैलून (गुब्बारेनुमा चीज़) से छोटे वॉल्व का साइज़ बड़ा करना

-अगर ये काम नहीं करता है तो दिल की सर्जरी की जाती है और वॉल्व को बदला जाता है ऑपरेशन से

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