‘हकलाना’. इस शब्द का इस्तेमाल लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए अक्सर किया जाता है. यहां तक कि हमारे न्यूज़रूम में भी इसको लेकर बहस हो गई. बहस कि ‘हकलाना’ शब्द का इस्तेमाल किया भी जाए या नहीं. या इसे अटकना. शब्द फंसना कहें. ये बहस क्यों हुई? शायद दीप की कहानी पढ़कर आप समझ जाएं.

दीप 19 साल के हैं. दरभंगा के रहने वाले हैं. उनका हमें मेल आया. दीप ने बताया कि वो बचपन से हकलाते हैं. स्कूल में सारे बच्चे उनका मज़ाक उड़ाते थे. हकलाने की वजह से उनका कॉन्फिडेंस एकदम खत्म सा हो गया. क्लास में अगर उनसे कोई सवाल पूछा जाता था वो बहुत नर्वस हो जाते थे. उनका जवाब पता होता था, पर लोगों के सामने बोलने से डरते थे. घबराहट में वो और ज्यादा हकलाने लगते थे. कॉलेज में भी यही हाल रहा. अब दीप नौकरी ढूंढ रहे हैं. उन्हें डर है कि उनके हकलाने की वजह उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी. वो चाहते हैं हम उनकी मदद करें. एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स से इसका तोड़ पूछें. हकलाने की दिक्कत को लेकर हमें पिछले कुछ महीनों में कई मेल्स आए हैं. तो चलिए आज बात करते हैं हकलाने के बारे में.

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लोग क्यों हकलाते हैं?

‘हकलाना’ एक बहुत ही आम स्पीच की प्रॉब्लम है. हकलाने में एक ही शब्द या आवाज़ थोड़ा लंबा खिंच जाता है. ये दिक्कत 1000 में एक इंसान को होती है. ज़्यादातर बचपन में ‘हकलाना’ शुरू हो जाता है, उम्र के साथ कई लोगों की ये दिक्कत अपने-आप ठीक भी हो जाती है. हर तीन में से दो बच्चे हकलाने की प्रॉब्लम से निपट लेते हैं.

हकलाने के मुख्य दो टाइप होते हैंः

-पहला टाइप है डेवलपमेंटल स्टैमरिंग. जो कि बचपन में ही शुरू हो जाती है. ढंग से बोल पाने में दो से साढ़े तीन साल का समय लगता है. इसी बीच हकलाने की आदत शुरू हो जाती है.

-दूसरा टाइप है लेट ऑनसेट स्टैमरिंग. ये बड़ों में होता है. ये ब्रेन को नुकसान पहुंचने से होता है. जैसे हेड इंजरी या स्ट्रोक. या कोई ऐसी बीमारी जिससे ब्रेन सेल्स डैमेज हो रहे हों. साइकोजेनिक यानी किसी बहुत बड़े इमोशनल ट्रॉमा के कारण.

लेट ऑनसेट स्टैमरिंग के कारण पता चल जाते हैं. वहीं डेवलपमेंटल स्टैमरिंग (यानी बचपन में ‘हकलाना’) के कारण अभी तक पता नहीं चल पाए हैं. डेवलपमेंटल स्टैमरिंग का एक कारण जेनेटिक भी हो सकता है क्योंकि 3 में से 2 लोगों में हकलाने की फैमिली हिस्ट्री पाई जाती है.

माता-पिता के लिए टिप्स

अगर आपका बच्चा ‘हकलाना’ है तो पेरेंट्स की प्रतिक्रिया बहुत ज़रूरी होती है. ये या तो बच्चे के हकलाने को ठीक कर सकती है या काफ़ी समय तक बच्चे के हकलाने को बढ़ा भी सकती है.

ऐसे में मां-बाप को क्या-क्या नहीं करना चाहिए?

-अगर बच्चा हकला रहा है तो उस समय उसकी बात को पूरा करने की कोशिश न करें

-उस टाइम दें खुद से ही पूरा करने के लिए

-हकलाने के लिए उसकी आलोचना न करें, उसका मज़ाक न उड़ाएं

-उसको घूरें न

-अपनी भावनाओं से बच्चे में इंटरेस्ट दिखाएं

-जो बच्चा बोल रहा है, उसमें रुचि दिखाएं

-लगातार उसके साथ आई कॉन्टैक्ट न रखें

-आपके घूरने से बच्चा झेंप सकता है

-मां-बाप को काफ़ी रिलैक्स होना पड़ता है

-क्योंकि अगर बच्चा देखता है कि उसके हकलाने से मां-बाप परेशान हो रहे हैं तो वो भी डर जाता है

इलाज

कैसे करें इस्तेमाल :
  • करी पत्ते को अच्छी तरह से धो लें।
  • रोज सुबह खाली पेट आठ से दस पत्तियों का सेवन करें।
  • समस्या के दिनों में यह प्रक्रिया रोजाना कर सकते हैं।
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-पहली चीज़ है डायरेक्ट थेरैपी. अगर ‘हकलाना’ बचपन से शुरू हो जाता है और चलते जा रहा है तो स्पीच थेरैपिस्ट डायरेक्ट बच्चे से बात कर सकते हैं. इस थेरैपी में ऐसे तरीके मौजूद हैं जिनकी मदद से हकलाने पर काबू पाया जा सकता है.

-अगर ब्रेन को नुकसान पहुंचने के कारण ‘हकलाना’ शुरू हुआ है तो न्यूरोलॉजिस्ट के साथ मिलकर एक पूरी टीम पता लगाती है कि ब्रेन के किस हिस्से में चोट लगी है और कैसे थेरैपी और दवाइयों की मदद से हकलाने को ठीक किया जा सकता है

-अगर ‘हकलाना’ किसी ट्रॉमा के कारण शुरू हुआ है तो ट्रॉमा फ़ोकस्ड थेरैपी काम आती है. इसके लिए साइकॉलजिस्ट से मिलिए

-हकलाने के बाद जो मानसिक प्रतिक्रिया होती है जैसे डर, घबराहट, अपने बारे में नेगेटिव राय, इसको ट्रीट करना भी बहुत ज़रूरी है

-ऐसा कॉग्निटिव बिहेवियर थेरैपी की मदद से होता है. इसमें ट्रेन्ड एक्सपर्ट बात करते हैं और समझाते हैं, समझाया जाता है कि बोलते समय कैसे एंग्जायटी पर काबू करें, किसी जल्दबाज़ी में न पड़ें बोलते समय. अपने बारे में नेगेटिव भावनाओं को पहचानें और उनपर काम करें, कई बार सम्मोहन जैसी थेरैपी भी बड़ों के साथ कारगर पाई जाती हैं.

इलाज के बारे में तो हमें डॉक्टर साहब ने बता दिया. अब जानते हैं एक स्पीच थेरैपिस्ट से कुछ ऐसी टिप्स के बारे में जो ‘हकलाने’ से निपटने में काफ़ी मददगार साबित होती हैं.

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