हमें ढेर सारा पानी पीना चाहिए। रोज आठ गिलास या दो लीटर पानी तो पीना ही चाहिए।’ ऐसे बिन मांगे मशविरे हमें खूब मिलते हैं। जल ही जीवन है। पानी हमारी जिंदगी के लिए बहुत अहम है। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए, लेकिन पानी को लेकर ऐसे ख्यालात हमेशा से नहीं थे।

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक पानी पीना बुरी बात मानी जाती थी। समाज के ऊपरी तबके के लोग पानी पीना अपनी हेठी समझते थे। उन्हें लगता था कि पेट को पानी से भरना तो गरीबों का काम है। ये तो उनकी शान के खिलाफ है। पर, आज ब्रिटेन में लोग खूब पानी पी रहे हैं। वहीं, अमेरिका में बोतलबंद पानी की मांग सोडे से भी ज्यादा हो गई है। भारत के लोग भी खूब पानी पी रहे हैं।

पिएं भी क्यों न। दिन रात ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह जो दी जा रही है। ज्यादा पानी पीने को अच्छी सेहत का राज, चमकीली त्वचा का कारण बताया जा रहा है। इसके अलावा ढेर सारा पानी पीकर कैंसर और वजन से छुटकारा पाने के नुस्खे भी चर्चा में हैं।

लंदन में मेट्रो में चलने वालों को पानी साथ लेकर चलने की सलाह दी जाती है। तो, ब्रिटेन में कई स्कूल और दफ्तरों में बिना पानी के बात आगे बढ़ ही नहीं सकती। लोग बताते हैं कि हर दिन कम से कम 8 गिलास यानी 240 मिलीलीटर पानी के आठ ग्लास खाली करने चाहिए। पर, ये नियम आया कहां से? इसकी सलाह किसने दी? क्योंकि कभी किसी रिसर्च या वैज्ञानिक ने तो ये दावा नहीं किया। फिर ढेर सारा पानी पीने के पीछे दीवाने क्यों हैं लोग? इसका राज दो पुराने मशविरों में छुपा है।

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वो मशविरा

1945 में अमेरिका के फूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड ऑफ नेशनल रिसर्च काउंसिल ने वयस्कों को सलाह दी कि वो हर कैलोरी खाने को पचाने के लिए एक मिलीलीट पानी पिएं। इसका मतलब हुआ कि आप दो हजार कैलोरी लेने वाली महिला हैं तो आप को दो लीटर पानी पीना चाहिए। 2500 कैलोरी लेने वाले मर्दों को दो लीटर से भी ज्यादा पानी पीना होगा। इसमें सिर्फ सादा पानी नहीं, बल्कि फलों, सब्जियों और दूसरे पेय पदार्थं से मिलने वाला पानी शामिल है। फलों और सब्जियों में 98 फीसदी तक पानी हो सकता है।

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इसके अलावा 1974 में मार्गरेट मैक्विलियम्स और फ्रेडरिक स्टेयर की किताब न्यूट्रिशन फॉर गुड हेल्थ में सिफारिश की गई थी कि हर वयस्क को रोज 8 गिलास पानी पीना चाहिए, लेकिन इन दोनों लेखकों ने भी ये कहा था कि इस खुराक में फलों और सब्जियों से मिलने वाले पानी को ही नहीं, सॉफ्ट ड्रिंक और यहां तक कि बीयर से हासिल होने वाला पानी भी शामिल है।

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इसमें कोई दो राय नहीं कि पानी बहुत जरूरी है। हमारे शरीर के कुल वजन का दो तिहाई हिस्सा पानी ही होता है। इसके जरिए हमें पोषक तत्व मिलते हैं। पानी शरीर से खराब तत्वों को बाहर निकालने में भी अहम रोल निभाता है। हमारे शरीर का तापमान नियमित करने से लेकर, जोड़ों की मुलायमियत बरक़रार रखने तक, पानी बहुत सारे काम करता है। शरीर के भीतर होने वाले बहुत से केमिकल रिएक्शन पानी के बगैर संभव नहीं।

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इसके अलावा हम पसीने, पेशाब और सांसों के जरिए पानी को शरीर से निकालते भी रहते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शरीर में पानी की जरूरी मात्रा हमेशा बनी रहे। हमें पानी की कमी न हो। जब भी शरीर में एक से दो फीसदी पानी कम हो जाता है, हम डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी के शिकार हो जाते हैं। फिर जब तक हम पानी की जरूरी तादाद दोबारा नहीं ले लेते, हमारी हालत खराब होती जाती है। कई बार तो पानी की कमी घातक भी साबित हो सकती है।

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भरम

रोज 8 गिलास पानी पीने का भरम पूरी दुनिया में है। कई दशक से चली आ रही सोच इस कदर हावी हो गई है कि हम इस पैमाने के हिसाब से पानी की भारी कमी के शिकार हैं। हालांकि जानकार मानते हैं कि हमें पानी की उतनी ही जरूरत है, जितना शरीर मांगे।

अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ इर्विन रोजेनबर्ग कहते हैं कि, ‘पानी के संतुलन को बनाना इंसान के शरीर ने हजारों साल की विकास की प्रक्रिया से गुजर कर सीखा है। इसकी शुरुआत तब से हुई थी जब समंदर से पहला जीव जमीन पर रहने पहुंचा था। आज इंसानों के शरीर में पानी का संतुलन बनाने की बेहद विकसित और पेचीदा व्यवस्था है।’

किसी भी स्वस्थ शरीर में पानी की जरूरत होते ही दिमाग को पता चल जाता है। तो वो इंसान को प्यास लगने का संकेत देता है। दिमाग से एक हार्मोन गुर्दों को भी निर्देश देता है कि वो पेशाब को गाढ़ा कर के शरीर से पानी निकालना कम करें और पानी बचाएं।

 

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