कैल्शियम जो हर किसी के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यही वो तत्व है जो हड्डियों को मजबूती देता है। महिलाओं और बच्चों के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी है। बच्चों के लिए जहां यह विकास के लिए जरूरी होता है, वहीं महिलाओं के लिए यह इसलिए जरूरी है क्योंकि पीरियड्स, प्रेगनेंसी, मेनोपॉज के समय शरीर में कैल्शियम की खपत बढ़ जाती है, जिसके चलते कैल्शियम की कमी सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। खासकर 30 के बाद महिलाओं के शरीर में इसकी कमी होने लगती है इसलिए इस और ध्यान देना जरूरी हो जाता है लेकिन भारतीय औरतें इसको लेकर लापरवाही बरतती है जबकि ऐसा कर वह खुद स्वस्थ संबंधी परेशानियों को खुद ही न्योता दे देती हैं।

कैल्शियम की कमी के चलते ही जोड़ों में दर्द रहने लगता है। इससे दांत भी कमजोर होने लगते है वहीं अगर समस्या बढ़ जाए तो गठिए होने के चांस भी बढ़ जाते हैं।

हड्डियों के लिए जरूरी है कैल्शियम

हड्डियों का 70% हिस्सा कैल्शियम फॉस्फेट से बना होता है। यही कारण है कि कैल्शियम हमारी हड्डियों की अच्छी सेहत के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व है।

किन महिलाओं को अधिक होती है समस्या

रिसर्च के अनुसार, 14 से 17 साल तक की लगभग 20% लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई जाती हैं। वहीं इससे ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में लगभग 40-60% तक कैल्शियम की कमी देखने को मिलती है। दरअसल, पीरियड्स, प्रेगनेंसी, मेनोपॉज के समय शरीर में कैल्शियम की खपत बढ़ जाती है। यही कारण है कि महिलाओं में कैल्शियम की कमी सबसे ज्यादा देखने को मिलती है।

कैल्शियम की कितनी मात्रा है जरूरी

पुरुषों के मुकाबले, महिलाओं को 30 की उम्र के बाद कैल्शियम की जरूरत ज्यादा होती है। भारत में लोग हर दिन 400 ग्राम से कम कैल्शियम खाते हैं, खासतौर पर औरतें जबकि शरीर को 1200-1500 मिलीग्राम कैल्शियम चाहिए होता है।

दूध पिलाने वाली मांओं को अधिक जरूरत

प्रेगनेंट और स्तनपान करवाने वाली औरतों को न्यूटिशियंस और कैल्शियम से भरपूर आहार खाने की बहुत जरूरत होती है क्योंकि गर्भवती और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां के शरीर से ही बच्चा का पूर्ण पोषण होता है इसलिए इन महिलाओं को दूसरी औरतों के मुकाबले कैल्शियम की भी ज्यादा जरूरत होती है।

चलिए अब जानते हैं कि आखिर इसके कारण क्या है…

-कैल्शियम की कमी की एक बड़ी वजह है डाइट। भारतीय महिलाएं अपने खान-पान को लेकर लापरवाह होती है, जो इसकी कमी का कारण बनता है।
-मेनोपॉज़ के दौरान महिलाओं को खासतौर पर ज्यादा कैल्शियम खाना चाहिए क्योंकि इस दौरान एस्ट्रोजेन हॉर्मोन का स्तर कम हो जाता है, जिससे हड्डियां पतली होने लगती हैं
-आमतौर पर लड़कियों को वैजाइनल डिस्चार्ज होता है। ये नॉर्मल है लेकिन इसमें कैल्शियम भी निकलता है। वहीं इस डिस्चार्ज में सोडियम, पोटेशियम, और मैग्नीशियम भी होता है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि आप अपनी डाइट पर ध्यान दें।

अगर आपके शरीर में कैल्शियम की कमी हो रही हैं तो यह संकेत दिखाई देंगे…

. हड्डियां कमजोर होना
. दांतो में कमजोरी
. नाखून कमजोर होना
. पीरियड्स से जुड़ी प्रॉब्लम्स
. बालों का झड़ना
. थकावट महसूस करना
. कमजोर इम्यून सिस्टम
. धड़कन तेज होना

कुछ जरूरी बातें

-जिन औरतों में कैल्शियम की कमी होती है, उनकी हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं।
-40 की से ऊपर या जिन महिलाओं को मेनोपॉज हो चुका हो उनका शरीर कैल्शियम कम मात्रा में सोखता है।
-जो औरतें केवल शाकाहारी खाना खाती हैं उनमें कैल्शियम की ज्यादा देखने को मिलती है।
-16 से 30 साल की लड़कियां जो डाइटिंग करती हैं, उनमें कैल्शियम की कमी होने की संभावना अधिक होती है।
-शरीर में विटामिन डी की कमी होने पर भी कैल्शियम कम हो जाता है क्योंकि यह कैल्शियम सोखने में मदद करता है।

कैल्शियम की कमी से क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं…

. ऑस्टियोपोरोसिस
. ऑस्टियोपीनिया
. हाईपोकैल्शिमिया

कैल्शियम के लिए क्या खाएं

कैल्शियम के लिए मार्कीट में आपको अच्छे सप्लीेमेंट्स मिल जाएंगे लेकिन अगर आप कैल्शियम भरपूर डाइट खाएं तो ज्यादा फायदेमंद है।

. दूध को संपूर्ण आहार माना जाता है, क्योंकि इसमें पोषक तत्वों की भरमार होती है। वहीं, बात आए कैल्शियम की, तो दूध का नाम सबसे पहले आता है इसके अलावा दही व पनीर भी खाएं।

. आपको खानी है हर सब्जियां जैसे पालक, पुदीना, बीन्स केल व ब्रोकली आदि इसमें आयरन, विटामिन के साथ-साथ कैल्शियम भी भरपूर होता है।

. दालें, कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन, जिंक, पोटैशियम, फोलेट, मैग्नीशियम और फाइबर के उत्कृष्ट स्रोत हैं।

. इसकी कमी दूर रखने के लिए ड्राई फ्रूट्स खाएं। बादाम, किशमिश, सूखी खुबानी, ड्राई फ्रूट्स, खजूर आपके लिए बेस्ट हैं।

. फलों में संतरे और कीनू खाएं। इसमें विटामिन-सी के साथ-साथ कैल्शियम भी पाया जाता है। बेरीज में कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। ब्लैकबेरी और स्ट्रॉबेरी दोनों ही फायदेमंद है।

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. फल के बीजों में भी कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं, जिसका सेवन आप दूध के साथ कर सकते हैं। आप अलसी, तिल, क्विनोआ खा सकते हैं।
. अगर आप नॉन वेज खा लेती हैं तो अंडा, मीट व सीफूड खाएं। इसमें कैल्शियम के साथ-साथ कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो आपकी सेहत के लिए जरूरी होते हैंधूप भी लेना ना भूलें क्योंकि विटामिन डी शरीर में कैल्शियम की मात्रा को सोखता है इसलिए सुबह की हल्की धूप 5 से 20 मिनट के लिए सेंके।

संतुलित आहार लें – संतुलित आहार लेने वाले व्यक्ति का मन भी हरा भरा रहता है। इसलिए अगर संभव हो तो ऑर्गेनिक फल व सब्जियों का सेवन करें। शहर में नहीं मिल रही है तो कम से कम फ्रेश चीजों को खाएं। पैकेज्ड फूड्स, मांसाहारी खाना, जंक फूड्स, शराब, सिगरेट, भांग-गांजा इत्यादि का सेवन न करें।

गेहूं के जवारे- गेहूं के पौधों में रोगनाशक गुण समाए होते हैं। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों का रस असाध्य बीमारियों को भी मिटा सकता है। इसके रस को ग्रीन ब्लड के नाम से भी जाना जाता है। गेहूं के जवारे का आधा कप ताजा रस रोगी को रोज सुबह-शाम पिलाने से डायबिटीज में लाभ होता है।

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इन दो दवाईयों को मुख्य रूप से डिप्रेशन के इलाज के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर देते हैं। इसके अलावा भी कई दवाईयां और उपचार हैं, जो कि डॉक्टर पीड़ित व्यक्ति की अवस्था को देखने के बाद ही लेने की सलाह देता है।

मेथी – मधुमेह के उपचार के लिए मेथीदाने के प्रयोग भी लाभदायक होता है। यदि कारण है कि दवा कंपनियां भी मेथी के पावडर को बाजार में लाई हैं। उपयोग के लिए मेथीदानों का चूर्ण बना लें और रोज सुबह खाली पेट दो टी-स्पून चूर्ण पानी के साथ फंकी कर लें। कुछ दिनों में आपको लाभ महसूस होने लगेगा।

अलसी के बीज (फ्लेक्स सीड) – अलसी के बीजों में फाइबर प्रचर मात्रा में पाया जाता है जो पाचन में तो मदद करता ही है साथ ही फैट और शुगर के अवशोषण में भी सहायक सिद्ध होता है। अलसी के बीजों के आटे के सेवन से मधुमेह के मरीजों में शुगर की मात्रा लगभग 28 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

दालचीनी – दालचीनी इंसुलिन की संवेदनशीलता को ठीक करने के साथ-साथ ब्लड ग्लूकोज के स्तर को भी कम करता है। आधी चम्मच दालचीनी रोज लेने से इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता को ठीक किया जा सकता है और वज़न को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

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काउंसलिंग जरूर कराएं- डिप्रेशन से परेशान व्यक्ति को काउंसलिंग जरूर करानी चाहिए। दवाईयों से ज्यादा असरदार काउंसलिंग होती है। इसलिए आपको अपने भीतर लक्षणों को देखने के बाद मनोचिकित्सक से काउंसलिंग करानी चाहिए। इसके लिए शर्म-संकोच न करें और न ही घबराएं। बिना देरी किए हुए ही डॉक्टर से मिलकर अपनी समस्या के बारे में बताएं।

जीवन में संतुलन बनाएं – आप अपने जीवन को संतुलित करने की सोचें। अपने लाइफस्टाइल को बैलेंस करके आप डिप्रेशन को दूर कर सकते हैं या खुद को डिप्रेशन से बचा सकते हैं। यह मामला लाइफस्टाइल से जुड़ा है इसलिए अपने जीवन में संतुलन बनाए रखें। 

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सर्दी में पानी की कमी से बॉडी डीहाइड्रेट हो जाती है, जिससे हाइपोथर्मिया जैसी बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है. शरीर का तापमान असंतुलित होने की वजह से ऐसा होता है. अपने बॉडी टेंपरेचर को मेंटेन रखने के लिए सर्दियों में खूब पानी पिएं और हाइपोथर्मिया जैसी बीमारी से दूर रहें.

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